विश्वकोशीय लेखक की परंपरा में हैं डॉ.रामविलास शर्मा- नामवर सिंह
‘रामविलास शर्मा एकाग्र’ पर आयोजित समारोह का हुआ उदघाटन, देशभर से जुटे साहित्यकार
शहर इलाहाबाद व यहां की अदबी
रवायत और गंगा-जमुनी तहज़ीब के लिए आज का दिन यादगार क्षण बन गया क्योंकि महात्मा
गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के
इलाहाबाद क्षेत्रीय केंद्र द्वारा ‘बीसवीं सदी का अर्थ : जन्मशती
का संदर्भ’ श्रृंखला के तहत प्रगतिशील लेखक संघ, उ.प्र. के
सहयोग से हिंदी के सुप्रसिद्ध आलोचक ‘रामविलास शर्मा एकाग्र’ पर आयोजित दो दिवसीय समारोह का उदघाटन आज ‘साधना
सदन’ में हुआ। समारोह में विद्वत वक्ताओं ने रामविलास शर्मा
की ‘भाषा और समाज’,
‘महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण’, ‘हिंदी जाति का साहित्य’, ‘भारत में अंग्रेजी राज और मार्क्सवाद,
‘भारतीय इतिहास और ऐतिहासिक भौतिकवाद’, ‘भारतीय संस्कृति और हिंदी प्रदेश’सहित कई रचनाओं की परत-दर-परत
पड़ताल कर गंभीर विमर्श किया।
हिंदी के शीर्ष आलोचक
प्रो.नामवर सिंह ने उदघाटन वक्तव्य में कहा कि राहुल सांकृत्यायन, वासुदेव शरण
अग्रवाल और डॉ.रामविलास शर्मा तीनों विश्वकोशीय लेखक हैं,
जिन्होंने इतिहास, साहित्य, समाज, संस्कृति और राजनीति समेत जहां भी उनकी दृष्टि गईं और उनको चुनौती मिली, उस पर उन्होंने खूब लिखा। रामविलास शर्मा में मार्क्सवाद की गहरी आस्था
थी। उन्होंने भारत के संदर्भ में मार्क्सवाद की नई व्याख्या कर अपने कर्म और
रचनात्मक उड़ान के लिए जगह बनायी। आर्यों के आगमन के संदर्भ में रामविलास जी ने
जो लिखा, उस पर कुछ इतिहासकार असहमति जताते हैं। उनके लेखन का परिदृश्य अत्यंत
विराट और विस्तृत है। रामविलास जी के लेखन को पहचानना व उससे संवाद करना किसी भी महत्वपूर्ण
लेखक की आज पहली जिम्मेदारी बनती है। उन्होंने अपनी साहित्य सर्जना में भाषा-परंपरा, भाषा-विज्ञान,
उपनिवेशवाद, पूँजीवाद, राष्ट्रीय आंदोलन, आधुनिकता, उत्तर-आधुनिकता जैसे तमाम वैचारिक
बहसों को उठाया है। वह भारत की वर्तमान संस्कृति और हिंदी प्रदेशों की उन जीवंत विरासतों
की ओर बार-बार हमारा ध्यान खींचते हैं।
प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय
महासचिव अली जावेद ने कहा कि रामविलास शर्मा के साथ ही एहतेशाम हुसैन, मंटो, अली सरदार जाफरी की भी जन्मशती है और हमें बारी-बारी से देश के विभिन्न
शहरों में, हो सके तो विदेशों में भी जन्मशती समारोहों का आयोजन
कर इन विभूतियों के योगदान को याद किया जाना चाहिए।
मुख्य अतिथि महात्मा गांधी
अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति विभूति नारायण राय ने
डॉ.शर्मा के विपुल लेखन की विशद चर्चा की। उन्होंने कहा कि रामविलास जी राजकीय, गैर-राजकीय व अन्य समारोहों से स्वयं को अलग रखते हुए एक ऋषि की तरह अनुशासनबद्ध
होकर लिखते रहे। शुरूआत कविता लेखन के रूप में हुई और बाद में वे गद्य लेखन की ओर
प्रवृत्त हुए। कविता कैसे पढ़ी जाए? इस संदर्भ में कुलपति राय ने ‘बहुवचन’ पत्रिका में आने वाले विजेन्द्र के ताजा लेख
पर प्रकाश डालते हुए कहा कि डॉ.शर्मा ने कविता पढ़ने की तमीज दी। विजेन्द्र ने
लिखा है कि रामविलास शर्मा कविता को मनोरंजन या समय बिताने के लिए नहीं अपितु वे
कविता के पास समाज चेता के रूप में जाते हैं। उन्होंने कहा कि एक ही कवि के कविता
के कई पाठ हो सकते हैं, बशर्ते कि कवि का मूल स्वर सुरक्षित
रहे। इस संदर्भ में उन्होंने कबीर का जिक्र करते हुए कहा कि हर स्थान का
अपना-अपना कबीर होता है।
अध्यक्षीय वक्तव्य में वरिष्ठ साहित्यकार प्रो.चौथीराम यादव ने कहा कि
डॉ.रामविलास शर्मा की न होने की स्थिति में आलोचक नामवर सिंह का तेवर कमजोर हुआ
है। दोनों के बीच चलने वाले ‘वाद-विवाद-संवाद’ से दोनों ऊर्जावान होते
थे। उन्होंने कहा कि डॉ.रामविलास शर्मा साम्राज्यवाद विरोध के स्थापित आलोचक थे, परंतु साथ ही साथ उन्होंने सवाल खड़ा किया कि उनके लेखन में सामंतवाद का विरोध कहां है? हाशिए का समाज कहां है? यह एक बड़ा सवाल है। उन्होंने
कहा कि डॉ.शर्मा बड़े राष्ट्रभक्त मार्क्सवादी थे।
इलाहाबाद क्षेत्रीय केंद्र के प्रभारी एवं जन्मशती समारोह के संयोजक प्रो. संतोष भदौरिया ने स्वागत वक्तव्य देते हुए कहा कि वर्धा विश्वविद्यालय
द्वारा यह आठवां आयोजन है। जन्मशती समारोह के माध्यम से हम साहित्य विभूतियों
को याद कर रहे हैं। हमारा यह प्रयास हो कि समारोह मात्र औपचारिकता नहीं हो। ‘आहा और ओहो की
संस्कृति’ से दूर साहित्य विभूतियों पर चर्चा करें और उनके
अंतर्विरोधों पर गंभीर विमर्श करें। वर्धा विश्वविद्यालय के सृजन विद्यापीठ के
अधिष्ठाता प्रो.सुरेश शर्मा ने संचालन किया तथा प्रलेस,
उ.प्र. के महासचिव संजय श्रीवास्तव ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर प्रो.ए.ए.
फातमी, नरेन्द्र सिंह, जय प्रकाश
धूमकेतु, अकील रिजवी, अजित पुष्कल, राजेन्द्र राजन, नरेन्द्र पुण्डरीक, असरार गांधी, मूलचंद गौतम,
आनन्द शुक्ल, पीयूष पातंजलि, प्रभाकर
सिंह, निरंजन सहाय, प्रकाश त्रिपाठी, एम.फिरोज, मुहम्मद नईम, खान
अहमद फारुख, अमित विश्वास, विनय भूषण
आदि प्रमुखता से उपस्थित थे। नामचीन और अदब की दुनिया से जुड़े लोगों के अलावा
सभागार में इलाहाबाद के साहित्य प्रेमियों और बड़ी संख्या में विद्यार्थियों की
मौजूदगी रामविलास जी की अहमियत पर मुहर लगा रही थी।
साहित्यकार दूधनाथ सिंह की अध्यक्षता
में ‘भाषा
और समाज’ विषय पर आधारित द्वितीय अकादमिक सत्र में अरुण होता, संजय कुमार, रामचन्द्र व वैभव सिंह ने विमर्श
किया। इस अवसर पर दूधनाथ सिंह बोले, हिंदी-उर्दू की साझा
संस्कृति एक नया रचनात्मक माहौल बना सकता है। इससे दोनों ही भाषाओं के रचनाकारों
को फायदा होगा। डॉ.रामविलास शर्मा की हिंदी जनपद संबंधी अवधारणा धीरेन्द्र वर्मा
की मध्य देश संबंधी अवधारणा से प्रेरित है। डॉ. शर्मा का भाषा चिंतन किशोरी दास
वाजपेयी के भाषा चिंतन से गहरे प्रभावित हैं। संचालन सूरज बहादुर थापा ने किया।
‘रामविलास शर्मा एकाग्र’ पर आज होगा विमर्श - महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा द्वारा ‘बीसवीं सदी का अर्थ : जन्मशती का
संदर्भ’ श्रृंखला के तहत ‘रामविलास
शर्मा एकाग्र’ पर आयोजित दो दिवसीय समारोह के दूसरे दिन
24/28, सरोजनी नायडू मार्ग, सिविल
लाइंस स्थित क्षेत्रीय केंद्र के सत्य प्रकाश मिश्र सभागार में 27 नवम्बर को सुबह 10-30 बजे ‘मार्क्सवादी आलोचना : अंतर्विरोध और विकास’ विषय पर आधारित तीसरे सत्र की अध्यक्षता प्रदीप सक्सेना करेंगे। बीज वक्तव्य कुमार पंकज देंगे। वक्ता के रूप में भारत भारद्वाज, रवि श्रीवास्तव, बजरंग बिहारी तिवारी
एवं रघुवंश मणि
इस विषय पर विमर्श करेंगे। दोपहर दो बजे चौथे सत्र का विषय ‘हिंदी जाति की अवधारणा : साहित्य और इतिहास’ होगा। इस सत्र में चौथीराम यादव बीज वक्तव्य देंगे। वक्ता के रूप में ज्ञान प्रकाश शर्मा, राजकुमार, हितेन्द्र पटेल एवं कृष्ण मोहन वक्तव्य देंगे।
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