वैचारिक प्रतिबद्धता और जुझारु एकता आज की जरूरत : विभूति नारायण राय
जब हम किसी आंदोलन के विमर्श और विरासत की बात करते
है तो ट्रेजिकसेन्स के बारे में सोचते हैं या नहीं यह महत्वपूर्ण है कभी भी कोई
कला या रचना विचार का उल्था नहीं होती। अनुवाद नहीं होती। इसके लिए मुखर एवं मुक्त
चिंतन होना जरूरी है। मंटो और फैज से हमे सीखना चाहिए जिनके यहां विचारधारा और
अनुभव को अलग से पहचानना संभव नहीं है। ये बातें महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय
हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा प्रलेस के सहयोग से आयोजित बीसवीं सदी का अर्थ: जन्मशती
का संदर्भ शीर्षक के अन्तर्गत प्रगतिशील आंदोलन : विर्मश और विरासत विषयक
उद्घाटन सत्र में कहीं। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि वरिष्ठ उपन्यासकार एवं
विश्वविद्यालय के कुलपति श्री विभूति नारायण राय ने कहा कि ईश्वर और विचारधारा
के अन्त की घोषणाएं हो रही हैं। चौतरफा हमला है, बाजार नियामक शक्ति की भूमिका में आ रहा है और प्रगतिशील
आंदोलन को निराशा की स्थिति में नहीं आना चाहिए। प्रगतिशील आंदोलन की नये सिरे से
पड़ताल हो। सभी मुक्तिकामी शक्तियां एकजुट होकर समस्त पूंजीवादी शक्तियों का
विरोध करें। इसमें और अधिक शक्ति हमारी साझा एवं गंगा जमुनी संस्कृति से आ सकती
है। उद्घाटन सत्र में विषय की प्रस्तावना रखते हुए प्रलेस के राष्ट्रीय महासचिव
अली जावेद ने कहा कि जब लोगों ने साहित्य को ड्राइंग रूम तक सीमित करने की कोशिश
की तो प्रगतिशीलन आंदोलन सामाजिक बदलाव का जरिया बना। उसने तहरीक की शक्ल में
कारगर भूमिका का निर्वाह किया। प्रेमचन्द तनक़ीद के साथ हुश्न का मियार बदलना
चाहते थे। मुख्य वक्ता प्रसिद्ध आलोचक खगेन्द्र ठाकुर ने कहा कि महफिल सजाना
अदीबों का काम नही है यह प्रेमचन्द बहुत पहले कह चुके हैं। प्रेमचन्द को घृणा का
प्रचारक कहा गया मगर उन्होंने समाज को बदलने का काम अपनी कलम के द्वारा जारी रखा।
प्रगतिशील आंदोलन मशाल दिखाने का काम करता है। समारोह के विशिष्ट अतिथि अकील
रिज़वी ने कहा कि प्रेमचन्द्र का आग्रह था कि जिन्दगी में जो हो रहा है उसी को
साहित्य में पेश करें। खयाल की दुनिया में रहने वाला अदब ठीक नही होता। समाज जिस
राह से गुजर रहा है, उसी की बात करें।
कार्यक्रम का संयोजन एवं
संचालन क्षेत्रीय केंद्र के प्रभारी प्रो. संतोष भदौरिया ने किया। अतिथियों का स्वागत
श्री पीयूष पातंजलि,
प्रकाश त्रिपाठी, अविनाश मिश्र ने किया।
तरक़्क़ी
पसंद तनक़ीद : हक़ीकत और नज़रिया पर आधारित प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए
अक़ील रिज़वी ने कहा कि साहित्य में समाज की सच्चाई और काव्य सुन्दरता नहीं है
तो साहित्य का कोई मतलब नहीं है। सत्र की शुरूआत दिल्ली से आईं अर्जुमन्द आरा
के आधार वक्तव्य से हुआ, उन्होंने
कहा कि साहित्य का अध्ययन आधारगत होता है जो वैज्ञानिक तौर पर करना चाहिए तरक्क़ी
पसंद तनक़ीद ने यही शिक्षा दी है। उनका वक्तव्य साहित्य के सामाजिक संदर्भों
एवं प्रगतिशील लेखक संघ के इतिहास वर्णन पर आधारित था। वक्ताओं में नगीना जदीन
ने एहतेशाम हुसैन की तनक़ीदी क्षमता और समझ के बारे में वर्णन किया, उन्होंने बताया कि वह पहले आलोचक है जिन्होंने साहित्य को दूसरे
संदर्भों से जोड़ने की कोशिश की। दूसरे वक्ता के रूप में वाराणसी के मुहम्मद अख्तर
ने एहतेशाम हुसैन की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डाला साथ ही संक्षेप में उनके व्यक्तित्व
का भी वर्णन किया। कानपुर से आए खान अहमद फारूक ने कहा कि साहित्य बिना सामाजिक
तत्वों के आगे नहीं बढ़ सकता। उन्होंने अपने वक्तव्य में बताया कि एहतेशाम
हुसैन ने विश्व स्तर के साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों से बातचीत का सिलसिला जारी
रखा और इस तरह भारतीय साहित्य की आलोचनात्मक दृष्टि पैदा की। बी.एच.यू. के आफताब
अहमद आफाकी ने इस आयोजन के लिए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
को मुबारक बाद दी, कि एहतेशाम हुसैन एवं अली सरदार जाफरी
जैसे भारतीय साहित्य की परंपरा के प्रमुख आलोचक व कवि साहित्यकार पर इतना बड़ा
आयोजन किया। उन्होंने अपने वक्तव्य में हिंदी उर्दू के रिश्तों की घनिष्ठता
को बताते हुए समाज और सहित्य के संबंधों पर चर्चा की। सत्र का संचालन ए.ए. फातमी
ने किया तथा स्वागत नीलम शंकर ने किया।
जन्मशती समारोह के दूसरे दिन दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए
वरिष्ठ आलोचक खगेंद्र ठाकुर के अनुसार जीवन को ताकत प्रदान करने का एक मजबूत
तरीका साहित्यिक रचना है। अली सरदार जाफ़री और एहतेशाम हुसैन जैसे तमाम प्रगतिशील
साहित्यकार ने अपने पूरे जीवन काल में इसी की कोशिश करते रहे। दूसरे सत्र के आधार
वक्तव्य में ए.ए. फातमी ने कहा कि सरदार जाफ़री की बड़ी शायरी का अध्ययन
आलोचकों ने गंभीरता से किया ही नहीं, अली सरदार जाफ़री के यहां अनीस, इकबाल, जोश, आदि का मिला जुला आहंग बड़े तौर पर देखने को
मिलता है। उन्होंने अपने इस आधार वक्तव्य में बताया कि प्रगतिशील आंदोलन के
लेखको ने पुरानी और भक्ति परंपरा को खंगाला और नये दौर का साहित्य रचा। वक्ता के
रूप में जगदीश नरायन ने बताया कोई भी साहित्यिक रचना हमारी त्रासदियों मुसीबतों
को दूर नहीं कर सकती लेकिन त्रासदियों और मुसीबतों के समय में बड़ा सहारा जरूर
देती हैं। अली सरदार जाफरी ने हिन्दुस्तान की संपूर्ण चिंता से साहित्य का
संबंध स्थापित किया। बाराबंकी से आये राजेश मल्ल ने कहा कि भारत की सांस्कृतिक
विरासत को बचाये रखने पर जोर दिया, उन्होंने बताया कि अली
सरदार जाफरी और प्रगतिशील आंदोलन के सभी साहित्यकारों ने उसी विरासत को बचाये
रखने का काम किया। दिल्ली विश्वविद्यालय से आये अबू बकर अब्बाद ने सरदार जाफरी
और उनकी कहानीयों पर चर्चा करते हुए प्रगतिशील आंदोलन की प्रक्रियाओं का उल्लेख किया।
शकील सिद्दीकी ने हिंदी उर्दू के बीच की दूरियां कम करने में विश्वविद्यालय की
मुख्य भूमिका की चर्चा करते हुए प्रगतिशील आंदोलन की सामाजिक भूमिकाओं का विस्तार
से उल्लेख किया। इस सत्र का संचालन सुरेद्र राही ने किया,
संजय श्रीवास्तव ने अतिथियों का स्वागत किया।
जन्मशती समारोह के समाहार सत्र
की अध्यक्षता करते हुए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के
कुलपति एवं वरिष्ठ उपन्यासकार विभूति नारायण राय ने कहा कि आज की सारी बड़ी
ताकतें गलत विचारों को बढ़ावा देने में लगी हैं जिस पर सभी बुद्धिजीवियों को
जुझारू रूप से प्रतिक्रिया व्यक्त करने की जरूरत है। उन्होंने अपने विचारों में
ये बात रखी कि मार्क्सवाद हमेशा आशावादी होता है, जबकि बड़ी रचना वैचारिक प्रतिबद्धता और ट्रेजिकसेन्स से
पनपती है, फिर मार्क्सवादी साहित्य बड़ी साहित्यिक परंपरा
भी रखता है। वक्ताओं में अली जावेद, ए.ए. फातमी, खगेन्द्र ठाकुर ने अपने समाहार वक्तव्य में साहित्यिक आंदोलनों और
प्रगतिशील आंदोलन की परंपराओं और भविष्य की चिंताओं तथा साहित्यिक चुनौतियों पर
प्रकाश डाला। सत्र के विशिष्ट अतिथि कामरेड जियाउल हक राजनीतिक चेतना की जानकारी
पर श्रोताओं का ध्यान केंद्रित कराते हुए इतिहास की बहुत सी यादों को प्रगतिशील
आंदोलन और विचारों से जोड़ते हुए नई दिशा की बात की। उन्होंने कहा कि सामाजिक
सड़ांध को दूर करना बहुत बड़ा कर्तव्य होगा, आज की भ्रष्टाचार
संस्कृति के खिलाफ अपनी चिंता व्यक्त करते हुए राजनीतिक संघर्षों को तेज करने
का आह्वान किया।
सत्र का संचालन संजय श्रीवास्तव ने किया तथा स्वागत
सुरेन्द्र राही ने किया। दो दिवसीय समारोह की समाप्ति पर जन्मशती समारोह के
संयोजक क्षेत्रीय केंद्र के प्रभारी प्रो. संतोष भदौरिया ने दूर दराज से आये सभी
अतिथिओं वक्ताओं एवं श्रोताओं का कार्यक्रम में भागीदारी हेतु धन्यवाद दिया। जन्मशती
समारोह में दोनों दिन प्रमुख रूप से जिआउल हक, अनीता गोजेश, हरिश्चन्द्र पाण्डेय, हरिश्चन्द्र अग्रवाल, रविनंदन सिंह, सीमा आजाद, विश्वविजय, धनंजय
चोपड़ा, डॉ. मुहम्मद नईम, अजित पुष्कल, जम़ीर अहसन,
फज़्ले हसनैन, शेलेन्द्र प्रताप सिंह,
अर्जुमंद आरा, अनुपम आनन्द, नंदल हितैषी, अविनाश मिश्रा,
सुरेद्र राही, असरार गांधी, ख्वाजा
जावेद अख्तर, फखरूल करीम, सालिहा
जर्रीन, संजय पांडेय, श्रीप्रकाश मिश्र, गुफरान अहमद खां, अशरफ अली बेग, जेपी मिश्रा, नीलम शंकर, असरफ
अली बेग, सहित बडी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।
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